गर्मी के सीजन में बिहार में लाल साग खूब मिलता है खेत में भी बाजार में भी शहर में भी गांव में भी लोग इसे बड़े चाव से खाते है। भोजपुरिया इलाके में लालसा को स्थानीय भाषा में गेनहरी का साग कहते हैं। इसकी दो प्रजाति होती है एक प्रजाति जो सालों पर पाई जाती है और खुद से भी उगती है वह हर एक कलर की होती है दूसरी प्रजाति जो खेतों में गर्मी के सीजन में उगाई जाती है वह लाल कलर की होती है इसका बी काफी छोटा कला चमकीला होता है हिस्सा की सबसे बड़ी खासियत है कि जब इस खेत तैयार करके इसके बीच उसमें डाल दिए जाते हैं उसके बाद प्रतिदिन इसमें वृद्धि होती है देखते-देखते एक सप्ताह के अंदर ही यह साग खाने योग्य तैयार हो जाता है फिर इसकी कटाई छटाई शुरू होती है और फिर नीचे से बढ़ना शुरू हो जाता है अब इसकी व्यापक पैमाने पर व्यावसायिक रूप से खेती होती है स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह साग काफी फायदेमंद है। पटना के बाजारों में यह साल 40 से ₹50 किलो के दर पर उपलब्ध सुबह सवेरे अगर आप जाएं तो आपको खेत से आया ताजा सांग मिल जाता है। राजधानी पटना के जला इलाके दीघा इलाके में व्यापक पैमाने पर इसकी खेती होती है और स्थानीय स्तर पर ही इसकी खपत है। इसका चने के साथ काफी जबरदस्त कांबिनेशन होता है मसाला डालकर फूल हुए चने के साथ जब उसकी सब्जी बनती है तो उसका टेस्ट कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। इसका रंग लाल होने के कारण या पकाने के बाद भी लाल ही रहता है चावल और रोटी के साथ काफी बढ़िया इसका समीकरण होता है गर्मी के दिनों में यह शरीर के तापमान को भी नियंत्रित करता है। कई सारे विटामिन और मिनरल्स बीच में पाए जाते हैं। अगर आपके भी इलाके में इस तरह की कोई खास खाने-पीने की चीज है फेमस है तो इसकी जानकारी जरूर उपलब्ध कराए।
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