Thursday, February 6, 2025

बहुजन समाज पार्टी का उदय

बसपा का गठन उच्च प्रोफ़ाइल वाले करिश्माई लोकप्रिय नेता कांशीराम द्वारा 14 अप्रैल 1984 में किया गया था। इस पार्टी का राजनीतिक प्रतीक (चुनाव चिन्ह) एक हाथी है। 13वीं लोकसभा (1999-2004) में पार्टी के 14 सदस्य थे। 14वीं लोक सभा में यह संख्या 17 और 15 वीं लोक सभा में यह संख्या 21 थी। वर्तमान अर्थात 16वीं लोकसभा में बसपा का कोई प्रतिनिधि नहीं था। 17वीं लोकसभा में बसपा ने फिर से वापसी की और 10 सांसद उसके लोकसभा में पहुँचे। बसपा का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश है और पार्टी ने इस प्रदेश में कई बार अन्य पार्टियों के समर्थन से सरकार भी बनाई है। मायावती कई वर्षों से पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

बहुजन शब्द का इतिहास

बहुजन शब्द तथागत बुद्ध के धर्मोपदेशों (त्रिपिटक) से लिया गया है, तथागत बुद्ध ने कहा था बहुजन हिताय बहुजन सुखाय उनका धर्म बहुत बड़े जन-समुदाय के हित और सुख के लिए हैं।

उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान में भी बसपा का मामूली जनाधार है। बसपा की स्थापना से पहले कांशीराम ने दबे–कुचले लोगों का हाल जानने के लिए पूरे भारत की यात्रा की और फिर 1978 में 'बामसेफ' और फिर डीएस-4 नामक संगठन बनाया। अंत में उन्होंने बसपा नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई, जिसके पहले अध्यक्ष स्वयं कांशीराम बने। 
सवर्ण समाज के विरोध को आधार बनाकर जन्मी बसपा ने बाद में सवर्ण समाज में भी पैठ बनाई है। मुस्लिमों को भी जोड़ा। वर्तमान में इसकी मुखिया सुश्री मायावती हैं। मायावती चार बार यूपी की मुख्‍यमंत्री रहीं। 1995, 1997, 2002 में वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाईं, जबकि चौथी बार 2007 से 2012 तक उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। 
 बसपा की 13वीं लोकसभा में 14, चौदहवीं लोकसभा में 17, जबकि 15वीं लोकसभा में 21 सदस्य थे। हालांकि 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव में उनकी पार्टी यूपी में खाता भी नहीं खोल पाई। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा, जिसका उसे फायदा भी हुआ। बसपा 10 सीटें जीतने में सफल रही, वहीं सपा की झोली में मात्र 5 सीटें ही आईं। समय के साथ मायावती के जनाधार में काफी गिरावट देखने को मिली। 
आमतौर पर दलितों की राजनीति करने वाली मायावती ने 2007 के विधानसभा चुनाव में 'सोशल इंजीनियरिंग' का सहारा लिया। इसके तहत उन्होंने सतीश मिश्रा को पार्टी में अहम भूमिका दी और टिकट वितरण में भी सवर्णों (ब्राह्मण, राजपूति आदि) को भी स्थान दिया। इसके चलते बसपा को दलित वोटों के साथ सवर्ण वोट भी मिले और वह पूरे बहुमत के साथ सत्ता में आई।


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