दही तो अपने हर जगह की खाया होगा पर जो दही जीवन में पहली बार होश संभालने के बाद खाया हो वह जरूर याद होगा कुछ ऐसे ही यादें जुड़ी हुई है सिवान जिले के लकड़ी नवीगंज प्रखंड के डमछू के दही से। यह दही सिर्फ दही नहीं वह प्यार दुलार स्नेहा भी था जो दही जमाने वाले लोगों के साथ आज भी कायम है। दही वाला टोला यादव जाति के लोगों का है प्रेम इतना कि जब से हो संभाल तब से लेकर आज तक कभी उस टोले के किसी भी सदस्य से किसी की तू तू मैं मैं नहीं हुई होगी। किसी भी शादी समारोह या आयोजन में दूध दही इसी टोले से आती थी और आती है। दही का स्वाद पहली बार जीवन में इसी गांव से आए दही से जेहन में आया। पहले रोज सुबह इस गांव की महिलाएं और पुरुष दही बेचने आते थे। दही के बदले में पैसा कम अनाज ज्यादा दिया जाता था 90 के दशक में चावल से दही बराबर होता था।बाद में मक्के से बराबर होने लगा।। जब घर में कोई बड़ा समारोह होता तो बहंगी पर दही लाद कर आता था।जिसके घर से दही आता था ।उसके मिट्टी के बर्तन पर नेल पॉलिश से उसका नाम लिख दिया जाता था कि समारोह समाप्त होने के बाद व्यक्ति का बर्तन वापस हो जाए। इस गांव की कई महिलाएं थीं जिनके साथ एक मातृत्व वाला संबंध था वह अपने घर से दही की खखोरी दूध का फेनसा लाना नहीं भूलती थी , मां उन महिलाओं को चूड़ी कपड़े या जरूरत पड़ने पर पैसे दिया करती थी। समय बदला तो सब कुछ बदल गया अब इस गांव के लोग दूध दही गांव-गांव लेकर नहीं बेचते हैं उनका दूध अब एक ही जगह किसी सेंटर पर चला जाता है। अभी गांव में ही कुछ दिनों बसेरा है आज बरसों बाद उसी गांव से स्पेशल दही आया है। बसंतपुर विधानसभा से विधायक मानिकी राय का संबंध इस गांव में था दही बेचने वाले लोग विधायक जी की कई कहानी सुनाया करते थे।
#अनूप
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