Tuesday, February 4, 2025

जनेश्वर मिश्र 'छोटे लोहिया'

 


जनेश्वर मिश्र
भारतीय राजनीतिज्ञ
पण्डित जनेश्वर मिश्र (5 अगस्त 1933 – 22 जनवरी 2010) समाजवादी पार्टी के एक राजनेता थे। समाजवादी विचारधारा के प्रति उनके दृढ निष्ठा के कारण वे 'छोटे लोहिया' के नाम से प्रसिद्ध थे। वे कई बार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे। उन्होने मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर, एच डी देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुज़राल के मंत्रिमण्डलों में काम किया। सात बार केन्द्रीय मंत्री रहने के बाद भी उनके पास न अपनी गाड़ी थी और न ही बंगला। इनके नाम पर लखनऊ में एशिया का सबसे बड़ा सुन्दर पार्क सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के प्रेरणा से उत्तर प्रदेश के पुर्व युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा निर्माण कराया गया ।[1]

जनेश्वर मिश्र का जन्म ५ अगस्त 1933 को बलिया के शुभनथहीं के गांव में हुआ था। उनके पिता रंजीत मिश्र किसान थे। बलिया में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद १९५३ में इलाहाबाद पहुंचे जो उनका कार्यक्षेत्र रहा। जनेश्वर को आजाद भारत के विकास की राह समाजवादी सपनों के साथ आगे बढ़ने में दिखी और समाजवादी आंदोलन में इतना पगे कि उन्हें लोग 'छोटे लोहिया' के तौर पर ही जानने लगे।

उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक कला वर्ग में प्रवेश लेकर हिन्दू हास्टल में रहकर पढ़ाई शुरू की और जल्दी ही छात्र राजनीति से जुड़े। छात्रों के मुद्दे पर उन्होंने कई आंदोलन छेड़े जिसमें छात्रों ने उनका बढ-चढ़ कर साथ दिया। 1967 में उनका राजनैतिक सफर शुरू हुआ। वह जेल में थे तभी लोकसभा का चुनाव आ गया। छुन्नन गुरू श्याम लाल वर्मा व सालिगराम जायसवाल ने उन्हें फूलपुर से विजयलक्ष्मी पंडित के खिलाफ चुनाव लड़ाया। चुनाव सात दिन बाकी था तब उन्हें जेल से रिहा किया गया। चुनाव में जनेश्वर को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद विजय लक्ष्मी पंडित राजदूत बनीं। फूलपुर सीट पर 1969 में उपचुनाव हुआ तो जनेश्वर मिश्र सोशलिस्ट पार्टी से मैदान में उतरे और जीते। लोकसभा में पहुंचे तो राजनारायण ने 'छोटे लोहिया' का नाम दिया। वैसे इलाहाबाद में उनको लोग पहले ही छोटे लोहिया के नाम से पुकारने लगे थे।

उन्होंने 1972 के चुनाव में यहीं से कमला बहुगुणा को और 1974 में इंदिरा गांधी के अधिवक्ता रहे सतीश चंद्र खरे को हराया। इसके बाद 1978 में जनता पार्टी के टिकट से इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे और विश्वनाथ प्रताप सिंह को पराजित किया। उसी समय वह पहली बार केन्द्रीय पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक मंत्री बने। इसके कुछ दिन बाद ही वह अस्वस्थ हो गये। स्वस्थ होने के बाद उन्हें विद्युत, परंपरागत ऊर्जा और खनन मंत्रालय दिया गया। चरण सिंह की सरकार में जहाजरानी व परिवहन मंत्री बने। 1984 में देवरिया के सलेमपुर संसदीय क्षेत्र से चंद्रशेखर से चुनाव हार गये। 1989 में जनता दल के टिकट पर इलाहाबाद से लडे़ और कमला बहुगुणा को हराया। इस बार संचार मंत्री बने। फिर चंद्रशेखर की सरकार में 1991 में रेलमंत्री और एचडी देवगौड़ा की सरकार में जल संसाधन तथा इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में पेट्रोलियम मंत्री बनाये गये। 1992 से २०१० तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे।

जनेश्वर मिश्र: 'छोटे लोहिया' ने जिसे हराया वह बन गया देश का पीएम किसी के लिए इससे अधिक सम्मान की बात क्या होगी कि वह जिसे अपना आदर्श मानता हो, दुनिया उसे भी उसके नाम से जानने लगे. समाजवादी राजनीति के दिग्गज नेता जनेश्वर मिश्र के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. राम मनोहर लोहिया और राज नारायण के विचार को आदर्श मान राजनीति में उतरने वाले पूर्वांचल के इस कद्दावर नेता को ताउम्र 'छोटे लोहिया' कहा जाता रहा.

उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत समाजसेवा से की. वह पहली बार साल 1969 में इलाहाबाद की फूलपुर लोकसभा सीट से निर्वाचित हुए. फूलपुर से निर्वाचित होने वाले वो पहले गैर-कांग्रेसी सांसद थे.जनेश्वर मिश्र का नाम कैसे पड़ा था 'छोटे लोहिया' विधानसभा के पहले दिन हुआ बंपर हंगामा, किसी ने पहनी टमाटर की माला तो किसी ने ऐसे किया विरोधविधानसभा के पहले दिन हुआ बंपर हंगामा, किसी ने पहनी टमाटर की माला तो किसी ने ऐसे किया विरोध
साल 1967 में जनेश्वर मिश्र ने अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था. वह फूलपुर की सीट से चुनाव लड़ रहे थे और उनकी प्रतिद्वंदी थीं देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बहन विजय लक्ष्मी पंडित. यह चुनाव मिश्र के लिए आसान नहीं था, नतीजा वह हार गए, लेकिन 1968 में विजय लक्ष्मी पंडित को यूनाइटेड नेशंस में भारत का परमानेंट रिप्रेसेंटेटिव बनाकर भेजा गया.ऐसे में फूलपुर की लोकसभा सीट पर उप-चुनाव हुआ. और उप-चुनाव में इस बार जनेश्वर मिश्र ने अपने हाथ से बाजी जाने नहीं दी. उन्होंने कांग्रेस के के.डी मालवीय को चुनाव हराया. इसके बाद जब जनेश्वर लोकसभा पहुंचे तो उनकी मुलाकात हुई समाजवादी नेता राज नारायण से. और यहीं पर पहली बार राज नारायण ने जनेश्वर मिश्र को छोटे लोहिया कहकर पुकारा, जो बाद में उनकी पहचान बन गया.1977 में मिश्र ने जिस नेता को चुनाव हराया बाद में वह बना देश का पीएम साल 1977 में लोकसभा चुनाव हुए. उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद सीट पर जनता पार्टी के जनेश्वर मिश्रा और कांग्रेस के विश्‍वनाथ प्रताप सिंह के बीच टक्कर थी. इसके बाद आए चुनाव परिणाम में जनेश्‍वर मिश्र की लोकप्रियता विश्‍वनाथ प्रताप सिंह पर भारी पड़ गई और जनेश्‍वर यहां चुनाव जीत गए.मिश्र ने सिंह को तब 89,988 वोटों के बड़े अंतर से हराया था. शायद जनेश्वर मिश्र से हार के बाद विश्‍वनाथ प्रताप सिंह के भाग्य खुल गए. वह इस हार के 3 साल बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और तकरीबन 12 साल बाद भारत के प्रधानमंत्री बने. और संयोग देखिए विश्‍वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में मिश्र देश के संचार मंत्री रहे.जनेश्वर मिश्र का निजी सफरजनेश्वर मिश्र का जन्म पांच अगस्त, 1933 को बलिया जिले में हुआ था. उनके पिता का नाम रंजीत मिश्र और माता का नाम बासमती था. बलिया में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वह इलाहाबाद पहुंचे, जो उनका कार्यक्षेत्र रहा. 1967 में उनके राजनैतिक सफर की शुरुआत हुई.कई बार सांसद और कई बार मंत्री रहे जनेश्वर मिश्र के पास न तो कभी निजी वाहन रहा और न कोई कोई बंगला. जीवन के आखिरी समय में वह सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे. 22 जनवरी 2010 में हार्ट अटैक की वजह से उनका इलाहाबाद में निधन हो गया था.

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