रात में जब घर में भात बज जाता था तो सुबह उसे फेका नहीं जाता था। उसे दौर में फ्रिज नहीं होता था रात के बचे हुए भात को पानी में डालकर छोड़ दिया जाता था जिससे वह खराब नहीं होता था सुबह में इस बात को नमक हरी मिर्च के साथ खाया जाता था बिहार के लोग इस खास प्रकार के भजन का जरूर आनंद आज भी लेते हैं बर्बाद होने से बचने की यह एक अनूठी पहल है। पहले के जमाने में सबके पास फ्रिज नहीं थी खासकर गर्मी के दिनों में बात को ज्यादा देर तक नहीं रखा जा सकता था इसीलिए बचे हुए भात को पानी में डालकर छोड़ दिया जाता था बाद में घर के सदस्य उसे पानी वाले भाग को नमक मिर्च अचार के साथ बड़े चावल से कहते थे गर्मी के दिनों में यह सब का फेवरेट फूड हुआ करता था किसी से किसी को किसी प्रकार की शिकायत नहीं थी। बचपन में कई बार हम लोगों को भी अपने गांव में खाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है हालांकि जब से प्रेशर कुकर का युक्त चला शहर में जीवन 3 बीएचके में कैद हुआ बहुत सारी भोजन की परंपराएं खुद-ब-खुद छूट गई। शहर में मौसम के हिसाब से नहीं बल्कि समय के हिसाब से व्यंजनों को बनाया जाता है जिस दिन छुट्टी होती है उसी दिन आपको आपका मनपसंद भोजन मिल सकता है बाकी दिन तो बस एक रूटीन वर्क है ऑफिस के लिए निकलते वक्त ही आपको भरपूर पेट पूजा कर लेना है फिर जब लौटिएगा तब टिफिन वाले कलचर से लोग काफी दूर होते चले गए। नई पीढ़ी के लोगों को दोपहर के लिए टिफिन ले जाना अपने शान के खिलाफ लगता है। वे जंक फूड पर ज्यादा डिपेंड होते चले गए। उन्हें मां के हाथ के बर्थडे रोटी भुजिया घर के दही चूड़ा से ज्यादा आसन खाना जोमैटो जैसे फूड प्रोडक्ट कंपनियों से मांगना लगता है। फिर पानी वाले भात की तरफ लौटते
है जो हम बिहारी के फूड कलर का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है बड़े आयोजनों में भी हमने देखा है कि जब भारी मात्रा में तैयार चावल यानी भात बच जाया करता था तो उसे फेंक नहीं जाता था। बल्कि उसे धूप में सुख दिया जाता था तथा संग्रहित करके रख लिया जाता था इस सूखे हुए भात वाले चावल का भुजा काफी जबरदस्त होता था। आप यूपी बिहार के लोगों के खान-पान को देखकर जरूर आश्चर्य कीजिएगा की कैसे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लोग उसे जमाने में भी सजग थे जब इतने सूचना के तंत्र नहीं हुआ करते थे।
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